Home Hindi समाज परिवर्तन हेतु भेद-विभेद भूलकर कार्य करें – डॉ. मोहनजी भागवत

समाज परिवर्तन हेतु भेद-विभेद भूलकर कार्य करें – डॉ. मोहनजी भागवत

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पुणे  समाज परिवर्तन के लिए सबके हाथ हाथों में होना चाहिए। सभी भेद-अभेद से ऊपर उठकर संत, महंत, धर्माचार्य अगर यह कार्य करें तो यह संभव है।  गोसेवा, जैविक खेती, सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण, स्वास्थ्य आदी माध्यमों से गतिविधियां बढ़ाने की आवश्यकता है, यह सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत की ओर से गुरुवार दि. 18 जनवरी को सिंहगड इन्स्टिट्यूट परिसर में ‘संत संगम’ कार्यक्रम में डॉ. भागवत बोल रहे थे। इस अवसर पर नाशिक, पुणे, अहमदनगर, सोलापूर, सांगली, सातारा, कोल्हापूर इन जिलों से विभिन्न पंथों एवं सम्प्रदायों के धर्माचार्य, संत, महंत,  महामंडलेश्वर आदि 300 मान्यवर संत सहभागी हुए थे।

डॉ. भागवत ने कहा, कि हिंदू अध्यात्म ही विज्ञान का आधार है। समाज जीवन में परिवर्तन अनिवार्य है। इसके लिए समाज के सभी घटकों खासकर संत, महंत, धर्माचार्यों को अपने अपने स्तर पर कार्य करते रहना चाहिए। तब समाज में सही दिशा में जाएगा, यह उसका तंत्र है। सरकार सेवक है और उसे अपने तंत्र से चलना चाहिए। देशभर में अवांछित गतिविधियों पर अंकुश तभी लगेगा जब समाज जागृत होगा। इसलिए समाज जागृत रहे तो सबकुछ अच्छा होगा। आध्यात्मिक क्षेत्र के लोग इस पर ध्यान दें तो भारत निश्चित ही अगले १०-२० वर्षों में विश्वगुरू होगा। यह देखने का भाग्य हमें मिलेगा, ऐसा विश्वास भी उन्होंने व्यक्त किया।

उन्होंने कहा, कि भारतीय संस्कृति, परंपरा के विषय में चिंता करने की आवश्यकता है, लेकिन इससे चिंतित न हो। लोगों के आचरण में हिंदू संस्कृति है। उसे दिशा दें, संरक्षण दें तो निश्चित ही उन्नति  और प्रगति होगी। संत, धर्माचार्यों का इसमें भारी योगदान आवश्यक होगा और यह भी निश्चित है, कि यह काम पूरा होने तक संघ बंद नहीं होगा। संघ इसलिए शुरू होगा ताकि देश का भाग्यचक्र बदला जाएं। संघ के पास ऐसे अनेक अच्छे जीवन के विचार है इसलिए फिर से कुछ अलग करने की जरूरत नहीं होगी।

राम मंदिर के विषय में बोलते हुए सरसंघचालकजी ने कहा, कि राम मंदिर , समाज जागरण से ही बनेगा। वहां राम मंदिर होगा, यह तो हमारी प्रतिज्ञा है ही, और कुछ नहीं होगा, यह निश्चित है। सन् 1586 में राम मंदिर तोड़ा गया तबसे अब तक संघर्ष जारी है। वहां मंदिर है यह उच्चतम न्यायालय ने भी अब मान्य किया है।

गुरुवार प्रातः सरसंघचालक डॉ.भागवत के साथ सभी मान्यवर संतों ने श्री विठ्ठल रूक्मिणी के दर्शन किए। उससे पूर्व सरसंघचालकजी ने संत नामदेव पायरी एवं संत चोखामेला समाधि के दर्शन किए।

संत संगम कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में प्रसाद महाराज अंमलनेरकर, अदृश्य काडसिध्देश्‍वर महाराज कण्हेरी मठ (कोल्हापूर),  चैतन्य महाराज देगलूरकर, मुकुंद महाराज जाटदेवलेकर, लक्ष्मण महाराज चव्हाण (सोलापूर) आदी ने उद्बोधन किया। इस अवसर पर मंच पर डॉ. मोहनजी भागवत, संकेश्‍वरपीठ शंकराचार्य, सागरानंद सरस्वती महाराज, फरशीवाले बाबा (नाशिक), भास्करगिरी महाराज, मारूतीबाबा कुर्‍हेकर महाराज, बालासाहेब देहूकर महाराज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघाचे पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव, शिवाजी महाराज मोरे आदी मान्यवर उपस्थित थे।

दोपहर के सत्र में उल्हास महाराज सुर्यवंशी, मोरेश्वर जोशी, सुनिल चिंचोलकर, संजय महाराज धोंडगे, प्रमोद महाराज जगताप, मारूती तुणतुणे महाराज ने मार्गदर्शन किया। विभिन्न स्थानों से आए हुए संत एवं धर्माचार्यों का स्वागत सिंहगड इन्स्टिट्यूटचे संचालक, अधिकारी और कर्मचारी तथा सोलापूर जिले के संघ परिवार से महिला एवं पुरूष कार्यकर्ताओं ने किया।

सौजन्य : वी.एस.के. पुणे