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महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जन्म जयंती के अवसर पर मा. सरकार्यवाह का वक्तव्य

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा
सेवा साधना एवं ग्राम विकास केंद्र, पट्टीकल्याणा – पानीपत (हरियाणा)
चैत्र कृष्ण 5-7 युगाब्द 5124 (12-14 मार्च 2023)
महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जन्म जयंती

पराधीनता के काल में जब देश अपने सांस्कृतिक व आध्यात्मिक आधार के सम्बन्ध में दिग्भ्रमित हो रहा था, तब महर्षि दयानन्द सरस्वती का प्राकट्य हुआ। उस काल में उन्होंने राष्ट्र के आध्यात्मिक अधिष्ठान को सुदृढ़ करने हेतु “वेदों की ओर लौटने” का उद्घोष कर समाज को अपनी जड़ों के साथ पुनः जोड़ने का अद्भुत कार्य किया। समाज को बल व चेतना प्रदान करने तथा समय के प्रवाह में आई कुरीतियों को दूर करनेवाले महापुरुषों की श्रृंखला में महर्षि दयानंद सरस्वती दैदीप्यमान नक्षत्र हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती के प्रादुर्भाव व उनकी प्रेरणाओं से हुई सांस्कृतिक क्रांति का स्पंदन आज भी अनुभव किया जा रहा है।

सत्यार्थप्रकाश में स्वराज को परिभाषित करते हुए उन्होंने लिखा कि स्वदेशी, स्वभाषा, स्वबोध के बिना स्वराज नहीं हो सकता। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महर्षि दयानंद की प्रेरणा और आर्यसमाज की सहभागिता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अनेक स्वनामधन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने इनसे प्रेरणा ली। “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” के संकल्प के साथ प्रारंभ किये गए आर्यसमाज के माध्यम से भारत को सही अर्थों में आर्य व्रत (श्रेष्ठ भारत) बनाना उनका प्रथम लक्ष्य था।

उन्होंने नारी को अग्रणी स्थान दिलाने के लिए युगानुकूल व्यवस्थाएँ बनाकर कन्या पाठशाला और कन्या गुरुकुल के माध्यम से उनको न केवल वेदों का अध्ययन करवाया अपितु नारी शिक्षा का प्रसार भी किया। आदर्श जीवनशैली अपनाने के लिए उन्होंने आश्रम व्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) पर न केवल आग्रह किया, अपितु उनके लिए व्यवस्था भी निर्माण की। उन्होंने देश की युवा पीढ़ी में तेजस्विता, चरित्र निर्माण, व्यसनमुक्ति, राष्ट्रभक्ति के संचार, समाज व देश के प्रति समर्पण निर्माण करने के लिए गुरुकुल व डीएवी विद्यालयों का प्रसार कर एक क्रांति की थी। गौ रक्षा, गोपालन, गौ आधारित कृषि, गौ संवर्धन के प्रति उनका आग्रह आज भी आर्यसमाज के कार्यों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। उन्होंने शुद्धि आन्दोलन प्रारम्भ कर धर्मप्रसार का एक नया आयाम खोला, जो आज भी अनुकरणीय है। महर्षि दयानंद का जीवन उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का साकार स्वरूप था। सादगी, परिश्रम, त्याग, समर्पण, निर्भयता एवं सिद्धांतों के प्रति अडिगता उनके जीवन के प्रत्येक क्षण में परिलक्षित होती है।

महर्षि दयानंद के उपदेशों और कार्यों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। उनकी द्विशताब्दी के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्हें श्रध्दापूर्वक वंदन करता है। सभी स्वयंसेवक इस पावन अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में पूर्णमनोयोग से भाग लेकर उनके आदर्शों को अपने जीवन में चरितार्थ करें। रा. स्व. संघ की मान्यता है कि अस्पृश्यता, व्यसन और अंधविश्वासों से मुक्त करके एवं ‘स्व’ से ओत-प्रोत संस्कारयुक्त ओजस्वी समाज का निर्माण करके ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।